रामबाबू का आनन्द। प्रेरक कहानी। Rambabu ka Anand. Prerak Kahani.

Rambabu ka anand

बेल बजी तो द्वार खोला। द्वार पर रामबाबू खड़ा था। रामबाबू हमारी कॉलोनी के लोगों की गाड़ियाँ, बाइक्स वगैरह धोने का काम करता था।

 

साहब, जरा काम था।

 

तुम्हारी सेलरी बाकी है क्या, मेरे पास ?

 

नहीं साहब, वो तो पहले ही मिल गई। बेटा दसवीं पास हो गया है तो मिठाई खिलाने आया हूँ

 

अरे वाह ! आओ अंदर आओ।

 

मैंने उसे बैठने को कहा। उसने मना किया लेकिन फिर, मेरे आग्रह पर बैठा। मैं भी उसके सामने बैठा तो उसने मिठाई का पैकेट मेरे हाथ पर रखा।

 

कितने मार्क्स मिले बेटे को ?

 

बासठ प्रतिशत।

 

अरे वाह ! उसे खुश करने को मैं बोला।

आजकल तो ये हाल है कि, 90 प्रतिशत ना सुनो तो आदमी फेल हुआ जैसा मालूम होता है। लेकिन रामबाबू बेहद खुश था।

 

साहब, मैं आज बहुत खुश हूँ। मेरे खानदान में इतना पढ़ जाने वाला एक मेरा ही बेटा है।

 

अच्छा, इसीलिए मिठाई वगैरह !

 

रामबाबू को शायद मेरा ये बोलना अच्छा नहीं लगा। वो हल्के से हँसा और बोला, " साहब, अगर मेरी सामर्थ्य होती तो हर साल मिठाई बाँटता। मेरा बेटा बहुत होशियार नहीं है, ये मुझे मालूम है। लेकिन वो कभी फेल नहीं हुआ और हर बार वो 2-3 प्रतिशत नंबर बढ़ाकर पास हुआ, क्या ये ख़ुशी की बात नहीं ? "

साहब, वह मेरा बेटा है, इसलिए ऐसा नहीं बोल रहा, बल्कि सुख सुविधाओं के बिना उसने पढ़ाई की, वो अगर केवल पास ही हो जाता, तब भी मैं मिठाई बाँटता।

 

मुझे खामोश देख रामबाबू बोला, " माफ करना साहब, अगर कुछ गलत बोल दिया हो तो। मेरे बाबा कहा करते थे कि, आनंद अकेले ही मत हजम करो बल्कि, सब में बाँटो। ये सिर्फ मिठाई नहीं है साहब - ये मेरा आनंद है!

 

मेरा मन भर आया। मैं उठकर भीतरी कमरे में गया और एक सुन्दर पैकेट में कुछ रुपए रखे।

 

भीतर से ही मैंने आवाज लगाई, रामबाबू, बेटे का नाम क्या है ?

 

जी शिवम बाहर से आवाज आई।

 

मैंने पैकेट पर लिखा - प्रिय शिवम, हार्दिक अभिनंदन ! अपने पिता की तरह सदा, आनंदित रहो !

 

रामबाबू ये लो।

 

ये किसलिए साहब ? आपने मुझसे दो मिनिट बात की, उसी में सब कुछ मिल गया।

 

ये शिवम के लिए है! इससे उसे उसकी पसंद की पुस्तक लेकर देना।

 

रामबाबू बिना कुछ बोले पैकेट को देखता रहा।

 

चाय वगैरह कुछ लोगे ?

 

नहीं साहब, अब मुझे और शर्मिन्दा न कीजिए। केवल इस पैकेट पर क्या लिखा है, ये बता दीजिए, क्योंकि मुझे पढ़ना नहीं आता।

 

घर जाओ और पैकेट शिवम को दो, वो पढ़कर बताएगा तुम्हें। मैंने हँसते हुए कहा।

 

मेरा आभार मानता रामबाबू चला गया लेकिन उसका आनंदित चेहरा मेरी नजरों के सामने से हटता नहीं था।

आज बहुत दिनों बाद एक आनंदित और संतुष्ट व्यक्ति से मिला था।

 

आजकल ऐसे लोग मिलते कहाँ हैं। किसी से जरा बोलने की कोशिश करो और विवाद शुरू। मुझे उन माता पिताओं के लटके हुए चेहरे याद आए जिनके बच्चों को 90-95 प्रतिशत अंक मिले थे। अपने बेटा / बेटी को कॉलेज में एडमीशन मिलने तक उनका आनंद गायब ही रहता था।

 

मोगरे के फूल की खुशबू सूंघने में कितना समय लगता है ?

 

सूर्योदय-सूर्यास्त देखने के कितने पैसे लगते हैं ?

 

स्नान करते हुए अगर आपने गीत गाया, गुनगुनाया, तो कौन आपसे कॉम्पिटीशन करने आने वाला है ?

 

बारिश हो रही है ? बढ़िया है - जाओ भीगो उस बारिश में !

 

कुछ भी करने के लिए आपको मूड़ लगता है क्या ?

 

इंसान के जन्म के समय उसकी मुट्ठियाँ बंद होती हैं।

ईश्वर ने एक हाँथ में आनंद और एक में संतोष भरके भेजा है।

 

दूसरों से तुलना करते हुए

और पैसे,

और कपड़े,

और बड़ा घर,

और हाई पोजीशन,

और परसेंटेज...!

 

इस और के पीछे भागते भागते उस आनंद के झरने से कितनी दूर चले आए हम !

आइये लौट चले जीवन के यथार्थ की ओर ।

हर पल का पूर्ण आनन्द लें।

 

अपने बच्चों की मेहनत पे उत्सव मनाए और अच्छा करने के लिए प्रेरित करें ।

इसे जरूर पढ़ें: किन तरीकों से आप रह सकते हैं हमेशा स्वस्थ ?


लेख पसंद आया हो तो मित्रों के साथ शेयर करें।